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Showing posts from February, 2022

सफलता के सूत्र

by  हिंदी ओलंपियाड फाउंडेशन  | Hindi Olympiad Foundation सफलता के सूत्र एक बार की बात है एक गुरु के दो शिष्य थे। एक पढ़ाई में बहुत तेज और विद्वान था और दूसरा फिसड्डी। पहले शिष्य की हर जगह प्रसंशा और सम्मान होता था। जबकि दूसरे शिष्य की लोग उपेक्षा करते थे। एक दिन रोष में दूसरा शिष्य गुरू जी के जाकर बोला, “गुरूजी! मैं उससे पहले से आपके पास विद्याध्ययन कर रहा हूँ। फिर भी आपने उसे मुझसे अधिक शिक्षा दी।” गुरुजी थोड़ी देर मौन रहने के बाद बोले, “पहले तुम एक कहानी सुनो। एक यात्री कहीं जा रहा था। रास्ते में उसे प्यास लगी। थोड़ी दूर पर उसे एक कुआं मिला। कुएं पर बाल्टी तो थी लेकिन रस्सी नही थी। इसलिए वह आगे बढ़ गया। थोड़ी देर बाद एक दूसरा यात्री उस कुएं के पास आया। कुएं पर रस्सी न देखकर उसने इधर-उधर देखा। पास में ही बड़ी बड़ी घास उगी थी। उसने घास उखाड़कर रस्सी बटना प्रारम्भ किया। थोड़ी देर में एक लंबी रस्सी तैयार हो गयी। जिसकी सहायता से उसने कुएं से पानी निकाला और अपनी प्यास बुझा ली। गुरु जी ने उस शिष्य से पूछा, अब तुम मुझे यह बताओ कि प्यास किस यात्री को ज्यादा लगी थी? शिष्य ने तुरंत उत्तर दिया

एक जीवन ऐसा भी - कित्तूर की वीर रानी चेन्नम्मा

          by  हिंदी ओलंपियाड फाउंडेशन  |  Hindi Olympiad Foundation रानी चेन्नम्मा *कर्नाटक में चेन्नम्मा नामक दो वीर रानियां हुई हैं।  केलाड़ी की चेन्नम्मा ने औरंगजेब से, जबकि कित्तूर की चेन्नम्मा ने अंग्रेजों से संघर्ष किया था।* कित्तूर के शासक मल्लसर्ज की रुद्रम्मा तथा चेन्नम्मा नामक दो रानियां थीं। काकतीय राजवंश की कन्या चेन्नम्मा को बचपन से ही वीरतापूर्ण कार्य करने में आनंद आता था। वह पुरुष वेश में शिकार करने जाती थी। ऐसे ही एक प्रसंग में मल्लसर्ज की उससे भेंट हुई। उसने चेन्नम्मा की वीरता से प्रभावित होकर उसे अपनी दूसरी पत्नी बना लिया। कित्तूर पर एक ओर टीपू सुल्तान तो दूसरी ओर अंग्रेज नजरें गड़ाये थे। दुर्भाग्यवश चेन्नम्मा के पुत्र शिव बसवराज और फिर कुछ समय बाद पति का भी देहांत हो गया। ऐसे में बड़ी रानी के पुत्र शिवरुद्र सर्ज ने शासन संभाला; पर वह पिता की भांति वीर तथा कुशल शासक नहीं था। स्वार्थी दरबारियों की सलाह पर उसने मराठों और अंग्रेजों के संघर्ष में अंग्रेजों का साथ दिया।  अंग्रेजों ने जीतने के बाद सन्धि के अनुसार कित्तूर को भी अपने अधीन कर लिया। कुछ समय बाद बीमारी से राजा

एक जीवन ऐसा भी - महात्मा ज्योतिबा फुले

          by  हिंदी ओलंपियाड फाउंडेशन  |  Hindi Olympiad Foundation महात्मा ज्योतिबा फुले महात्मा ज्योतिबा फुले का जन्म 20 फरवरी, 1827 को पुणे (महाराष्ट्र) में हुआ था। इनके पिता गोविन्दराव जी फूलों की खेती से जीवन यापन करते थे, इस कारण  इनका परिवार फुले कहलाता था। महाराष्ट्र में उन दिनों छुआछूत की बीमारी चरम पर थी। अछूत जाति के लोगों को अपने चलने से अपवित्र हुई सड़क की सफाई के लिए कमर में पीछे की ओर लम्बा झाड़ू बांधकर तथा थूकने के लिए गले में एक लोटा लटकाकर चलना होता था। एक वर्ष की अवस्था में उनकी मां का देहान्त हो गया। अछूत बच्चे उन दिनों विद्यालय नहीं जाते थे, पर समाज के विरोध के बावजूद गोविन्दराव ने ज्योति को शिक्षा प्राप्त करने के लिए विद्यालय भेजा। खेत में फूलों की देखभाल करते हुए भी वे पढ़ने का समय निकाल लेते थे, इस प्रकार वे सातवीं तक पढ़े। 14 वर्ष की अवस्था में ज्योतिबा का विवाह आठ वर्षीय सावित्री बाई से हो गया। पढ़ाई में रुचि देखकर उनके पड़ोसी मुंशी गफ्फार तथा पादरी लेजिट ने उन्हें मिशनरी विद्यालय में भर्ती करा दिया।  वहां सभी जातियों के छात्रों से उनकी मित्रता हुई। एक बार ज

एक जीवन ऐसा भी - छत्रपति शिवाजी महाराज

        by  हिंदी ओलंपियाड फाउंडेशन  |  Hindi Olympiad Foundation छत्रपति शिवाजी महाराज भारत की वीरता के इतिहास में ऐसे अनेक महान सपूतों के नाम स्वर्ण अक्षरों में अंकित हैं जो देश की अस्मिता और गौरव के लिए मर मिटे। हिंदवी साम्राज्य की शानदार विजय पताका फहराने वाले महान शूरवीर छत्रपति शिवाजी एक ऐसे ही योद्धा थे।  मुगलों को उनकी औकात बताकर उनके सबसे क्रूर शासक औरंगजेब को शिकस्त देने वाले भारत के महान वीर  शिवाजी महाराज का जन्म 19 फ़रवरी 1630 में शिवनेरी दुर्ग में हुआ था। इनके पिता का नाम शाहजी भोसलें और माता का नाम जीजाबाई था। उनकी माता ने उनका नाम भगवान शिवाय के नाम पर शिवाजी रखा। शिवाजी के पिताजी शाहजी भोंसले एक मराठा सेनापति थे, जो कि डेक्कन सल्तनत के लिए कार्य किया करते थे। शिवाजी के जन्म के समय डेक्कन की सत्ता तीन इस्लामिक सल्तनतों बीजापुर, अहमदनगर और गोलकोंडा में थी। शिवाजी अपनी माँ जीजाबाई के प्रति बेहद समर्पित थे। उनकी माँ बहुत ही धार्मिक थी। उनकी माता शिवाजी को बचपन से ही युद्ध की कहानियां तथा उस युग की घटनाओं के बारे में बताती रहती थीं, खासकर उनकी माँ उन्हें रामायण और महाभारत

एक जीवन ऐसा भी - श्री रामकृष्ण परमहंस

      by  हिंदी ओलंपियाड फाउंडेशन  |  Hindi Olympiad Foundation श्री रामकृष्ण परमहंस रामकृष्ण परमहंस जी एक महान संत और श्रेष्ठ विचारक थे, जिनके विचारों को स्वयं विवेकानंद जी ने पूरी दुनियाँ में फैलाया। रामकृष्ण परमहंस जी ने सभी धर्मो को एक बताया, उनका मानना था कि सभी धर्मो का आधार प्रेम, न्याय और परहित ही हैं। रामकृष्ण परमहंस जी का जन्म 18 फरवरी सन 1836 में हुआ था।  बाल्यकाल में इन्हें लोग गदाधर के नाम से जानते थे। यह एक ब्राह्मण परिवार से थे। इनका परिवार बहुत गरीब था लेकिन इनमे आस्था, सद्भावना एवं धर्म के प्रति अपार श्रद्धा एवम प्रेम था। राम कृष्ण परमहंस जी देवी काली के प्रचंड भक्त थे।  उन्होंने अपने आप को देवी काली को समर्पित कर दिया था। रामकृष्ण परमहंस जी के विचारों पर उनके पिता की छाया थी। उनके पिता धर्मपरायण सरल स्वभाव के व्यक्ति थे, यही सारे गुण राम कृष्ण परमहंस जी में भी व्याप्त थे। इन्होने सभी धर्मो को एक बताया। इनके विचारों से कई लोग प्रेरित हुए, जिन्होंने आगे चलकर इनका नाम और अधिक बढ़ाया। रामकृष्ण परमहंस जी को गले का रोग हो जान के कारण इन्होने 15 अगस्त 1886 को अपने शरीर को त्य

एक जीवन ऐसा भी - संत शिरोमणि श्री रविदास जी

    by  हिंदी ओलंपियाड फाउंडेशन  |  Hindi Olympiad Foundation संत शिरोमणि श्री रविदास जी संत श्री रविदास जी की लेखन शैली व उनकी रचनाओं में हमेशा मानवीय एकता व समानता पर बल दिया जाता था। वे मानते थे कि जब तक हमारा अंतर्मन पवित्र नहीं होगा, तब तक हमें ईश्वर का सानिध्य नहीं मिल सकता है। दूसरी ओर, यदि हमारा ध्यान कहीं और लगा रहेगा, तो हमारा मुख्य कर्म भी बाधित होगा तथा हमें कभी-भी लक्ष्य की प्राप्ति नहीं हो सकती है। जो बातें उन्होंने स्वयं पर आजमाई, उन्हें ही रचनाओं के माध्यम से आम जन को बताया। उनके जीवन की एक घटना से पता चलता है कि वे गंगा स्नान की बजाय खुद के कार्य को संपन्न करने को प्राथमिकता देते हैं।     संत शिरोमणि रविदास जी के जीवन से संबंधित प्रेरक प्रसंग।-  १. श्रम ही है साधन  संत श्री रविदास जी ने कहा कि लगातार कर्म पथ पर बढ़ते रहने पर ही सामान्य मनुष्य को मोक्ष की राह दिखाई दे सकती है। अपने पदों व साखियों में वे किसी भी लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए श्रम को ही मुख्य आधार बताते हैं। इसलिए वे मध्यकाल में भी अपनी बातों से आधुनिक कवि समान प्रतीत होते हैं। वे लिखते हैं, 'जिह्वा स