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Showing posts from May, 2022

एक जीवन ऐसा भी - अहिल्याबाई होल्कर

           by  हिंदी ओलंपियाड फाउंडेशन  |   Hindi Olympiad Foundation तपस्वी राजमाता अहल्याबाई होल्कर भारत में जिन महिलाओं का जीवन आदर्श, वीरता, त्याग तथा देशभक्ति के लिए सदा याद किया जाता है,  उनमें रानी अहिल्याबाई होल्कर का नाम प्रमुख है। उनका जन्म 31 मई, 1725 को ग्राम छौंदी (अहमदनगर, महाराष्ट्र) में एक साधारण कृषक परिवार में हुआ था। इनके पिता श्री मनकोजी राव शिन्दे परम शिवभक्त थे। अतः यही संस्कार बालिका अहल्या पर भी पड़े। एक बार इन्दौर के राजा मल्हारराव होल्कर ने वहां से जाते हुए मन्दिर में हो रही आरती का मधुर स्वर सुना। वहां पुजारी के साथ एक बालिका भी पूर्ण मनोयोग से आरती कर रही थी। उन्होंने उसके पिता को बुलवाकर उस बालिका को अपनी पुत्रवधू बनाने का प्रस्ताव रखा। मनकोजी राव भला क्या कहते, उन्होंने सिर झुका दिया। इस प्रकार वह आठ वर्षीय बालिका इन्दौर के राजकुंवर खांडेराव की पत्नी बनकर राजमहलों में आ गयी। इन्दौर में आकर भी अहल्या पूजा एवं आराधना में रत रहती। कालान्तर में उन्हें दो पुत्री तथा एक पुत्र की प्राप्ति हुई। 1754 में उनके पति खांडेराव एक युद्ध में मारे गये। 1766 में उनके ससु

एक जीवन ऐसा भी - सर एडमंड हिलेरी

          by  हिंदी ओलंपियाड फाउंडेशन  |   Hindi Olympiad Foundation पर्वत प्रेमी सर एडमंड हिलेरी देवातात्मा हिमालय अध्यात्म प्रेमियों की तरह खतरों के खिलाडि़यों को भी अपनी ओर आकृष्ट करता है। 8,848 मीटर ऊंचे, विश्व के सर्वोच्च पर्वत शिखर सागरमाथा (माउंट एवरेस्ट) पर नेपाली शेरपा तेनसिंग के साथ सर्वप्रथम चढ़ने वाले सर एडमंड हिलेरी ऐसे ही एक साहसी पर्वतारोही थे। हिलेरी का जन्म न्यूजीलैंड के आकलैंड में 20 जुलाई, 1919 को एक किसान परिवार में हुआ था। उन्होंने मधुमक्खी पालन को व्यवसाय के रूप में अपनाया; पर खतरों से खेलने का स्वभाव होने के कारण न्यूजीलैंड के पर्वत उन्हें सदा आकर्षित करते थे। 1939 में उन्होंने आल्पस पर्वत पर चढ़ाई की और उसके बाद न्यूजीलैंड के सब पहाड़ों को जीता। उन्होंने एक वायुसैनिक के नाते द्वितीय विश्व युद्ध में अपने देश की ओर से भाग भी लिया। हिलेरी के जीवन का सबसे महत्वपूर्ण दिन 29 मई, 1953 था, जब उन्होंने सर्वप्रथम सागरमाथा के शिखर पर झंडा फहराया। इसके बाद तो साहसिक अभियानों पर जाने का उन्हें चस्का ही लग गया। सागरमाथा के बाद उन्होंने हिमालय सहित विश्व की दस और प्रमुख चो

एक जीवन ऐसा भी - प्रताप सिंह बारहठ

          by  हिंदी ओलंपियाड फाउंडेशन  |   Hindi Olympiad Foundation प्रताप सिंह बारहठ एक पुलिस अधिकारी और कुछ सिपाही उत्तर प्रदेश की बरेली जेल में हथकडि़यों और बेडि़यों से जकड़े एक तेजस्वी युवक को समझा रहे थे, ‘‘कुँअर साहब, हमने आपको बहुत समय दे दिया है। अच्छा है कि अब आप अपने क्रान्तिकारी साथियों के नाम हमें बता दें। इससे सरकार आपको न केवल छोड़ देगी, अपितु पुरस्कार भी देगी। इससे आपका शेष जीवन सुख से बीतेगा।’’ उस युवक का नाम था प्रताप सिंह बारहठ। वे राजस्थान की शाहपुरा रियासत के प्रख्यात क्रान्तिकारी केसरी सिंह बारहठ के पुत्र थे। प्रताप के चाचा जोरावर सिंह भी क्रान्तिकारी गतिविधियों में सक्रिय थे।वे रासबिहारी बोस की योजना से राजस्थान में क्रान्तिकार्य कर रहे थे। इस प्रकार उनका पूरा परिवार ही देश की स्वाधीनता के लिए समर्पित था। पुलिस अधिकारी की बात सुनकर प्रताप सिंह हँसे और बोले, ‘‘मौत भी मेरी जुबान नहीं खुलवा सकती। हम सरकारी फैक्ट्री में ढले हुए सामान्य मशीन के पुर्जे नहीं हैं। यदि आप मुझसे यह आशा कर रहे हैं कि मैं मौत से बचने के लिए अपने साथियों के गले में फन्दा डलवा दूँगा, तो आपकी

एक जीवन ऐसा भी - क्रान्तिकारी रासबिहारी बोस

         by  हिंदी ओलंपियाड फाउंडेशन  |   Hindi Olympiad Foundation क्रान्तिकारी रासबिहारी बोस  बीसवीं सदी के पूर्वार्द्ध में प्रत्येक देशवासी के मन में भारत माता की दासता की बेडि़याँ काटने की उत्कट अभिलाषा जोर मार रही थी। कुछ लोग शान्ति के मार्ग से इन्हें तोड़ना चाहते थे, तो कुछ जैसे को तैसा वाले मार्ग को अपना कर बम-गोली से अंग्रेजों को सदा के लिए सात समुन्दर पार भगाना चाहते थे। ऐसे समय में बंगभूमि ने अनेक सपूतों को जन्म दिया, जिनकी एक ही चाह और एक ही राह थी - भारत माता की पराधीनता से मुक्ति। 25 मई, 1885 को बंगाल के चन्द्रनगर में रासबिहारी बोस का जन्म हुआ। वे बचपन से ही क्रान्तिकारियों के सम्पर्क में आ गये थे। हाईस्कूल उत्तीर्ण करते ही वन विभाग में उनकी नौकरी लग गयी। यहाँ रहकर उन्हें अपने विचारों को क्रियान्वित करने का अच्छा अवसर मिला, चूँकि सघन वनों में बम, गोली का परीक्षण करने पर किसी को शक नहीं होता था। रासबिहारी बोस का सम्पर्क दिल्ली, लाहौर और पटना से लेकर विदेश में स्वाधीनता की अलख जगा रहे क्रान्तिवीरों तक से था। 23 दिसम्बर, 1912 को दिल्ली में वायसराय लार्ड हार्डिंग की शोभा यात

हिंदी के पुरोधा - प्रकृति के सुकुमार कवि सुमित्रानंदन पंत

          by  हिंदी ओलंपियाड फाउंडेशन  |   Hindi Olympiad Foundation Credit: Souvik Das कवि सुमित्रानंदन पंत अपनी कविता के माध्यम से प्रकृति की सुवास सब ओर बिखरने वाले  कवि श्री सुमित्रानंदन पंत का जन्म कौसानी (जिला बागेश्वर, उत्तराखंड) में 20 मई, 1900 को हुआ था। जन्म के कुछ ही समय बाद मां का देहांत हो जाने से उन्होंने प्रकृति को ही अपनी मां के रूप में देखा और जाना।  दादी की गोद में पले बालक का नाम गुसाई दत्त रखा गया; पर कुछ बड़े होने पर उन्होंने स्वयं अपना नाम सुमित्रानंदन रख लिया। सात वर्ष की अवस्था से वे कविता लिखने लगे थे। कक्षा सात में पढ़ते हुए उन्होंने नेपोलियन का चित्र देखा और उसके बालों से प्रभावित होकर लम्बे व घुंघराले बाल रख लिये। प्राथमिक शिक्षा के बाद वे बड़े भाई देवीदत्त के साथ काशी आकर क्वींस कॉलिज में पढे़। इसके बाद प्रयाग से उन्होंने इंटरमीडियेट उत्तीर्ण किया। 1921 में ‘असहयोग आंदोलन’ के दौरान जब गांधी जी ने सरकारी विद्यालय, नौकरी, न्यायालय आदि के बहिष्कार का आह्नान किया, तो उन्होंने पढ़ाई छोड़ दी और घर पर रहकर ही हिन्दी, संस्कृत, बंगला और अंग्रेजी का अध्ययन किया।  प्र

एक जीवन ऐसा भी - क्रांतिवीर सुखदेव

        by  हिंदी ओलंपियाड फाउंडेशन  |   Hindi Olympiad Foundation क्रांतिवीर सुखदेव थापर स्वतन्त्रता संग्राम के समय उत्तर भारत में क्रान्तिकारियों की दो त्रिमूर्तियाँ बहुत प्रसिद्ध हुईं। पहली चन्द्रशेखर आजाद, रामप्रसाद बिस्मिल तथा अशफाक उल्ला खाँ की थी, जबकि दूसरी भगतसिंह, सुखदेव तथा राजगुरु की थी। इनमें से सुखदेव का जन्म ग्राम नौघरा (जिला लायलपुर, पंजाब, वर्तमान पाकिस्तान) में 15 मई, 1907 को हुआ था। इनके पिता प्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता श्री रामलाल थापर तथा माता श्रीमती रल्ली देई थीं। सुखदेव के जन्म के दो साल बाद ही पिता का देहान्त हो गया। अतः इनका लालन-पालन चाचा श्री अचिन्तराम थापर ने किया। सुखदेव के जन्म के समय वे जेल में मार्शल लाॅ की सजा भुगत रहे थे। ऐसे क्रान्तिकारी वातावरण में सुखदेव बड़ा हुए।  जब वह तीसरी कक्षा में थे, तो गवर्नर उनके विद्यालय में आये। प्रधानाचार्य के आदेश पर सब छात्रों ने गवर्नर को सैल्यूट दिया; पर सुखदेव ने ऐसा नहीं किया। जब उनसे पूछताछ हुई, तो उन्होंने साफ कह दिया कि मैं किसी अंग्रेज को प्रणाम नहीं करूँगा। आगे चलकर सुखदेव और भगतसिंह मिलकर लाहौर में क्रान्त

दत्तात्रेय के 24 गुरु

         by  हिंदी ओलंपियाड फाउंडेशन  |   Hindi Olympiad Foundation दत्तात्रेय के 24 गुरु ब्रह्माजी के मानस पुत्र ऋषि अत्रि के पुत्र हैं भगवान दत्तात्रेय। शास्त्रों के अनुसार मार्गशीर्ष माह की पूर्णिमा पर भगवान दत्तात्रेय की जयंती मनाई जाती है। इनकी माता का नाम अनुसूइया था। कई ग्रंथों यह बताया गया है कि ऋषि अत्रि और अनुसूइया के तीन पुत्र हुए। ब्रह्माजी के अंश से चंद्रमा, शिवजी के अंश से दुर्वासा ऋषि, भगवान विष्णु के अंश दत्तात्रेय का जन्म हुआ। कहीं-कहीं यह बताया गया है कि भगवान दत्तात्रेय ही ब्रह्मा, विष्णु और शिव के सम्मिलित अवतार हैं। दत्तात्रेय ने 24 गुरु बनाये थे।  भगवान दत्तात्रेय के 24 गुरु कौन-कौन हैं और व उनसे क्या सीखा जा सकता है। 1. पृथ्वी- सहनशीलता व परोपकार की भावना सीख सकते हैं। पृथ्वी पर लोग कई प्रकार के आघात करते हैं, कई प्रकार के उत्पात होते हैं, कई प्रकार खनन कार्य होते हैं, लेकिन पृथ्वी हर आघात को परोपकार का भावना से सहन करती है। 2. पिंगला वेश्या- पिंगला नाम की वेश्या से दत्तात्रेय ने सबक लिया कि केवल पैसों के लिये जीना नहीं चाहिए। वह वेश्या सिर्फ पैसा पाने के लिये