Skip to main content

परिचय | About Us


परिचय

हिंदी ओलंपियाड फाउंडेशन दिल्ली सरकार द्वारा पंजीकृत शैक्षिक, सामाजिक एवं गैर-लाभकारी संस्था है। हिंदी ओलंपियाड फाउंडेशन का उद्देश्य हिंदी भाषा को राष्ट्रीय, अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर समृद्ध बनाना है।

हिंदी ओलंपियाड फाउंडेशन विगत कुछ वर्षों से अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर हिंदी विषय पर आधारित परीक्षा का आयोजन सफलतापूर्वक कर रहा है।

हिंदी भाषा के सरल, सुगम और वैज्ञानिक रूप को छात्रों तक पहुँचाने में हिंदी ओलंपियाड फाउंडेशन निरंतर प्रयासरत है। हिंदी ओलंपियाड फाउंडेशन छात्रों की हिंदी व्याकरण के प्रति रूचि जागृत करने के साथ-साथ उनकी बौद्धिक क्षमता को निखारने के लिए मानक भाषा का ज्ञान प्रदान करना भी है।

हिंदी ओलंपियाड फाउंडेशन बच्चों में शिक्षा, डिजिटल साक्षरता, बौद्धिक क्षमता का पता लगाने और प्रतिस्पर्धी भावना विकसित करने को बढ़ावा देती है। हिंदी ओलंपियाड फाउंडेशन का उद्देश्य छात्रों को स्कूली किताबों से परे उनके शैक्षणिक क्षितिज को व्यापक बनाने में सहायता करना और आज के अत्यधिक प्रतिस्पर्धी माहौल में उत्कृष्टता प्राप्त करने के लिए तैयार करना है।


लक्ष्य एवं उद्देश्य


हिंदी एक समृद्ध एवं वैज्ञानिक भाषा है और इसमें अभिव्यक्ति की असीम क्षमता है। हिंदी के इसी सरल, सुबोध एवं सुगम रूप को और सरल तरीके से छात्रों तक पहुँचाने एवं हिंदी भाषा के उत्थान के लिए हिंदी ओलंपियाड फाउंडेशन निरंतर प्रयासरत है। हिंदी भाषा के माध्यम से साहित्य, बोलियों एवं क्षेत्रीय भाषाओं में समन्वय स्थापित कर हिंदी को राष्ट्रभाषा का सम्मान दिलाना ही हिंदी ओलंपियाड फाउंडेशन का मुख्य लक्ष्य है।

हिंदी ओलंपियाड फाउंडेशन का मुख्य उद्देश्य हिंदी भाषा के महत्व को बढ़ाने के साथ-साथ इसके व्यापक रूप से छात्रों का परिचय कराना भी है जिससे वे सरल, रोचक एवं सहज भाव से हिंदी भाषा का ज्ञान प्राप्त कर सकें। इसके साथ-साथ विद्यार्थियों में हिंदी भाषा का विकास करने एवं उनकी प्रतिभा को उभारने हेतु “हिंदी ओलिंपियाड” एवं अन्य प्रतियोगिताएं आयोजित करना एवं प्रतिभाशाली छात्रों को पुरस्कृत करना भी सम्मिलित हैं।


ओलंपियाड


हिंदी ओलंपियाड फाउंडेशन (HOF) प्रत्येक वर्ष अंतर्राष्ट्रीय हिंदी ओलंपियाड का आयोजन करते हैं। हिंदी ओलंपियाड फाउंडेशन के शिक्षाविदों और आधुनिक हिंदी मीडिया विशेषज्ञों के मार्गदर्शन में हर साल अंतर्राष्ट्रीय स्तर के हिंदी ओलंपियाड का आयोजन किया जाता है। इस ओलंपियाड में 40 से अधिक देशों (भारत, संयुक्त अरब अमीरात, सिंगापुर, यूनाइटेड किंगडम, यूएसए आदि) के छात्र भाग लेते हैं।

Comments

Popular posts from this blog

एक जीवन ऐसा भी - गुरु अर्जुन देव

                                    by  हिंदी ओलंपियाड फाउंडेशन  |   Hindi Olympiad Foundation गुरु अर्जुन देव का बलिदान हिन्दू धर्म और भारत की रक्षा के लिए अनेक वीरों एवं महान् आत्माओं ने अपने प्राण अर्पण किये हैं, पर उनमें भी सिख गुरुओं के बलिदान का उदाहरण विशेष महत्व रखता है। पाँचवे गुरु श्री अर्जुनदेव जी ने जिस प्रकार आत्मार्पण किया, उससे हिन्दू समाज में अतीव जागृति का संचार हुआ। सिख पन्थ का प्रादुर्भाव गुरु नानकदेव जी द्वारा हुआ। उनके बाद यह धारा गुरु अंगददेव, गुरु अमरदास से होते चौथे गुरु रामदास जी तक पहुँची। रामदास जी के तीन पुत्र थे। एक बार उन्हें लाहौर से अपने चचेरे भाई सहारीमल के पुत्र के विवाह का निमन्त्रण मिला। रामदास जी ने अपने बड़े पुत्र पृथ्वीचन्द को इस विवाह में उनकी ओर से जाने को कहा, पर उसने यह सोचकर मना कर दिया कि कहीं इससे पिताजी का ध्यान मेरी ओर से कम न हो जाये। उसके मन में यह इच्छा भी थी कि पिताजी के बाद गुरु गद्दी मुझे ही मिलनी चाहिए। इसके बाद गुरु रामदास जी ने दूसरे पुत्र महादेव को कहा, पर उसने भी यह कह कर मना कर दिया कि मेरा किसी से वास्ता नहीं है। इसके बाद राम

स्वामी विवेकानंद के जीवन से जुड़ी एक अद्भुत कहानी

by  हिंदी ओलंपियाड फाउंडेशन  |  Hindi Olympiad Foundation ये उस समय की बात है जब स्वामी विवेकानंद अमेरिका में थे। एक बार वे भ्रमण पर निकले एक नदी के पास से गु ज रते हुए उन्होंने कुछ लड़कों को देखा, वे सभी पुल पर खड़े थे और वहां से नदी के पानी में बहते हुए अंडों के छिलकों पर, बंदूक से निशाना लगाने का प्रयास कर रहे थे। लेकिन किसी भी लड़के का एक भी निशाना सही नहीं लग रहा था, यह देख वे उन लड़कों के पास गए और उनसे बंदूक लेकर खुद निशाना लगाने लगे। उन्होंने पहला निशाना लगाया, वो सीधे जाकर अंडो के छिलकों पर लगा फिर उन्होंने दूसरा निशाना लगाया, वो भी सटीक लगा। फिर एक के बाद एक उन्होंने बारह निशाने लगाये, सभी निशाने बिल्कुल सही जगह जाकर लगे। यह देख वे सभी लड़के आश्चर्यचकित रह गए, उन्होंने स्वामी जी से पूछा, “स्वामी जी, आप इतना सटीक निशाना कैसे लगा पाते हैं ? भला कैसे कर पाते हैं आप ये?” इस पर स्वामी विवेकानन्द ने उत्तर दिया, “असंभव कुछ भी नहीं है ।  तुम जो भी काम कर रहे हो, अपना दिमाग पूरी तरह से बस उसी एक काम में लगा दो ।  यदि पाठ पढ़ रहे हो, तो सिर्फ पाठ के बारे में सोचो ।  यदि निशाना साध रहे हो, तो

एक जीवन ऐसा भी - अहिल्याबाई होल्कर

           by  हिंदी ओलंपियाड फाउंडेशन  |   Hindi Olympiad Foundation तपस्वी राजमाता अहल्याबाई होल्कर भारत में जिन महिलाओं का जीवन आदर्श, वीरता, त्याग तथा देशभक्ति के लिए सदा याद किया जाता है,  उनमें रानी अहिल्याबाई होल्कर का नाम प्रमुख है। उनका जन्म 31 मई, 1725 को ग्राम छौंदी (अहमदनगर, महाराष्ट्र) में एक साधारण कृषक परिवार में हुआ था। इनके पिता श्री मनकोजी राव शिन्दे परम शिवभक्त थे। अतः यही संस्कार बालिका अहल्या पर भी पड़े। एक बार इन्दौर के राजा मल्हारराव होल्कर ने वहां से जाते हुए मन्दिर में हो रही आरती का मधुर स्वर सुना। वहां पुजारी के साथ एक बालिका भी पूर्ण मनोयोग से आरती कर रही थी। उन्होंने उसके पिता को बुलवाकर उस बालिका को अपनी पुत्रवधू बनाने का प्रस्ताव रखा। मनकोजी राव भला क्या कहते, उन्होंने सिर झुका दिया। इस प्रकार वह आठ वर्षीय बालिका इन्दौर के राजकुंवर खांडेराव की पत्नी बनकर राजमहलों में आ गयी। इन्दौर में आकर भी अहल्या पूजा एवं आराधना में रत रहती। कालान्तर में उन्हें दो पुत्री तथा एक पुत्र की प्राप्ति हुई। 1754 में उनके पति खांडेराव एक युद्ध में मारे गये। 1766 में उनके ससु

एक जीवन ऐसा भी - मिसाइल मैन डॉ. अब्दुल कलाम

                                 by  हिंदी ओलंपियाड फाउंडेशन  |   Hindi Olympiad Foundation मिसाइल मैन डॉ. अब्दुल कलाम क्या हम कल्पना कर सकते हैं कि उस युवक के मन पर क्या बीती होगी, जो वायुसेना में विमान चालक बनने की न जाने कितनी सुखद आशाएं लेकर देहरादून गया था; पर परिणामों की सूची में उसका नाम नवें क्रमांक पर था, जबकि चयन केवल आठ का ही होना था। कल्पना करने से पूर्व हिसाब किताब में यह भी जोड़ लें कि मछुआरे परिवार के उस युवक ने नौका चलाकर और समाचारपत्र बांटकर जैसे-तैसे अपनी शिक्षा पूरी की थी। देहरादून आते समय केवल अपनी ही नहीं, तो अपने माता-पिता और बड़े भाई की आकांक्षाओं का मानसिक बोझ भी उस पर था, जिन्होंने अपनी  अनेक आवश्यकताएं ताक पर रखकर उसे पढ़ाया था, पर उसके सपने धूल में मिल गये। निराशा के इन क्षणों में वह जा पहुंचा ऋषिकेश, जहां जगतकल्याणी मां गंगा की पवित्रता, पूज्य स्वामी शिवानन्द के सान्निध्य और श्रीमद्भगवद्गीता के सन्देश ने उसेे नये सिरे से कर्मपथ पर अग्रसर किया। उस समय किसे मालूम था कि नियति ने उसके साथ मजाक नहीं किया, अपितु उसके भाग्योदय के द्वार स्वयं अपने हाथों से खोल दिये

हिंदी के पुरोधा - प्रकृति के सुकुमार कवि सुमित्रानंदन पंत

          by  हिंदी ओलंपियाड फाउंडेशन  |   Hindi Olympiad Foundation Credit: Souvik Das कवि सुमित्रानंदन पंत अपनी कविता के माध्यम से प्रकृति की सुवास सब ओर बिखरने वाले  कवि श्री सुमित्रानंदन पंत का जन्म कौसानी (जिला बागेश्वर, उत्तराखंड) में 20 मई, 1900 को हुआ था। जन्म के कुछ ही समय बाद मां का देहांत हो जाने से उन्होंने प्रकृति को ही अपनी मां के रूप में देखा और जाना।  दादी की गोद में पले बालक का नाम गुसाई दत्त रखा गया; पर कुछ बड़े होने पर उन्होंने स्वयं अपना नाम सुमित्रानंदन रख लिया। सात वर्ष की अवस्था से वे कविता लिखने लगे थे। कक्षा सात में पढ़ते हुए उन्होंने नेपोलियन का चित्र देखा और उसके बालों से प्रभावित होकर लम्बे व घुंघराले बाल रख लिये। प्राथमिक शिक्षा के बाद वे बड़े भाई देवीदत्त के साथ काशी आकर क्वींस कॉलिज में पढे़। इसके बाद प्रयाग से उन्होंने इंटरमीडियेट उत्तीर्ण किया। 1921 में ‘असहयोग आंदोलन’ के दौरान जब गांधी जी ने सरकारी विद्यालय, नौकरी, न्यायालय आदि के बहिष्कार का आह्नान किया, तो उन्होंने पढ़ाई छोड़ दी और घर पर रहकर ही हिन्दी, संस्कृत, बंगला और अंग्रेजी का अध्ययन किया।  प्र