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Showing posts from June, 2022

एक जीवन ऐसा भी - क्रांतिकारी नलिनीकान्त बागची

            by  हिंदी ओलंपियाड फाउंडेशन  |   Hindi Olympiad Foundation क्रांतिकारी   नलिनीकान्त   बागची भारतीय स्वतन्त्रता के इतिहास में यद्यपि क्रान्तिकारियों की चर्चा कम ही हुई है, पर सच यह है कि उनका योगदान अहिंसक आन्दोलन से बहुत अधिक था। बंगाल क्रान्तिकारियों का गढ़ था, इसी से घबराकर अंग्रेजों ने राजधानी कोलकाता से हटाकर दिल्ली में स्थापित की थी। इन्हीं क्रान्तिकारियों में एक थे नलिनीकान्त बागची, जो सदा अपनी जान हथेली पर लिये रहते थे। मुर्शिदाबाद के कंचनताला में जन्में उनके पिता का नाम भुबनमोहन बागची है। उन्होंने कृष्णनाथ कॉलेज, बहरामपुर से पढ़ाई की। बाद में उन्होंने पटना के बांकीपुर कॉलेज और भागलपुर कॉलेज में पढ़ाई की। कृष्णनाथ कॉलेज, बरहामपुर में पढ़ाई के दौरान, वह जुगंतर की क्रांतिकारी पार्टी में शामिल हो गए। वह पुलिस की गिरफ्त से बचने के लिए पटना के बांकीपुर कॉलेज और भागलपुर कॉलेज गया था। उन्होंने दानापुर के सैनिकों के बीच स्वतंत्रता संग्राम के विचारों को भड़काने की कोशिश की। उन्होंने पार्टी के निर्देशन में गुवाहाटी के अठगांव में शरण ली। इधर, 12 जनवरी, 1918 को, पुलिस के साथ सशस

एक जीवन ऐसा भी - राम प्रसाद बिस्मिल

            by  हिंदी ओलंपियाड फाउंडेशन  |   Hindi Olympiad Foundation   अमर शहीद राम प्रसाद बिस्मिल     न चाहूँ मान दुनिया में, न चाहूँ स्वर्ग को जाना | मुझे वर दे यही माता रहूँ भारत पे दीवाना || स्वतंत्रता और क्रांतिकारी भावना की इच्छा उनके शरीर और उनकी कविता के हर शब्द में गूंजने के साथ, राम प्रसाद बिस्मिल सबसे उल्लेखनीय भारतीय क्रांतिकारियों में से थे। जिन्होंने ब्रिटिश उपनिवेशवाद से लड़ाई लड़ी और सदियों के संघर्ष के बाद देश को आजादी की हवा में सांस लेना संभव बना दिया। राम प्रसाद बिस्मिल का जन्म 11 जून, 1897 को उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर जिले के एक गैर-वर्णित गांव में मुरलीधर और मूलमती के घर हुआ था। वह कम उम्र मे ही आर्य समाज से जुड़ गए थे। बिस्मिल ने 'बिस्मिल', 'राम' और 'अज्ञात' के उपनामों से उर्दू और हिंदी में शक्तिशाली देशभक्ति कविताएँ लिखना शुरू किया। एक भारतीय राष्ट्रवादी और आर्य समाजी भाई परमानंद को दी गई मौत की सजा को पढ़ने के बाद स्वतंत्रता और क्रांति के आदर्श सबसे पहले उनके दिमाग में समा गए। उन्होंने अपने क्रोध को अपनी कविता 'मेरा जन्म'

एक जीवन ऐसा भी - भगत पूरन सिंह

           by  हिंदी ओलंपियाड फाउंडेशन  |   Hindi Olympiad Foundation पिंगलवाड़ा के संत  : भगत   पूरन सिंह सेवा को जीवन का लक्ष्य मानने वालों के लिए पिंगलवाड़ा धमार्थ संस्थान, अमृतसर के संस्थापक भगत पूर्णसिंह एक आदर्श हैं। उनका जन्म 4 जून, 1904 को लुधियाना के राजेवाल गांव में हुआ था। उनका जन्म का नाम रामजीदास था। उनकी मां और पिता का विधिवत विवाह नहीं हुआ था। उनकी जाति अलग थी और दोनों ही पूर्व विवाहित भी थे। गांव-बिरादरी के झंझट और पति के दुराग्रह के कारण उनकी मां को अपने तीन गर्भ गिराने पड़े थे। बहुत रोने-धोने पर पिता की सहमति से चौथी बार रामजीदास का जन्म हुआ। 1914 के अकाल में उनके पिता का साहूकारी का कारोबार चौपट हो गया और वे चल बसे। मां ने मिंटगुमरी, लाहौर आदि में घरेलू काम कर अपनी इस एकमात्र संतान को पाला और पढ़ाया; पर सेवा कार्य में व्यस्त रहने से वह कक्षा दस में अनुत्तीर्ण हो गया। मां ने उसे हिम्मत बंधाई; पर रामजीदास ने समाज सेवा को ही जीवन का व्रत बना लिया और लाहौर के गुरुद्वारा डेहरा साहब में बिना वेतन के काम करने लगा। 1924 में एक चारवर्षीय गूंगे, बहरे, अपाहिज और लकवाग्रस्त ब

एक जीवन ऐसा भी - महाराजा छत्रसाल

           by  हिंदी ओलंपियाड फाउंडेशन  |   Hindi Olympiad Foundation बुन्देलखण्ड का शेर : महाराजा छत्रसाल झाँसी के आसपास उत्तर प्रदेश और मध्यप्रदेश की विशाल सीमाओं में फैली बुन्देलखण्ड की वीर भूमि में तीन जून, 1649 (ज्येष्ठ शुक्ल 3, विक्रम संवत 1706) को चम्पतराय के घर में छत्रसाल का जन्म हुआ था। चम्पतराय सदा अपने क्षेत्र से मुगलों को खदेड़ने के प्रयास में लगे रहते थे। अतः छत्रसाल पर भी बचपन से इसी प्रकार के संस्कार पड़ गये। जब छत्रसाल केवल 12 साल के थे, तो वह अपने मित्रों के साथ विन्ध्यवासिनी देवी की पूजा के लिए जा रहे थे। रास्ते में कुछ मुस्लिम सैनिकों ने उनसे मन्दिर का रास्ता जानना चाहा। छत्रसाल ने पूछा कि क्या आप लोग भी देवी माँ की पूजा करने जा रहे हैं ? उनमें से एक क्रूरता से हँसते हुए बोला- नहीं, हम तो मन्दिर तोड़ने जा रहे हैं। यह सुनते ही छत्रसाल ने अपनी तलवार उसके पेट में घोंप दी। उसके साथी भी कम नहीं थे। बात की बात में सबने उन दुष्टों को यमलोक पहुँचा दिया। बुन्देलखण्ड के अधिकांश राजा और जागीरदार मुगलों के दरबार में हाजिरी बजाते थे। वे अपनी कन्याएँ उनके हरम में देकर स्वयं क