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एक जीवन ऐसा भी - महात्मा गांधी

                                  by  हिंदी ओलंपियाड फाउंडेशन  |   Hindi Olympiad Foundation  युगपुरुष गांधी जी मोहनदास करमचन्द गांधी का जन्म 2 अक्तूबर, 1869 को पोरबन्दर (गुजरात) में हुआ था। उनके पिता करमचन्द गांधी पहले पोरबन्दर और फिर राजकोट के शासक के दीवान रहे। गांधी जी की माँ बहुत धर्मप्रेमी थीं। वे प्रायः रामायण, महाभारत आदि ग्रन्थों का पाठ करती रहती थीं। वे मन्दिर जाते समय अपने साथ मोहनदास को भी ले जाती थीं। इस धार्मिक वातावरण का बालक मोहनदास के मन पर बहुत प्रभाव पड़ा। बचपन में गांधी जी ने श्रवण की मातृ-पितृ भक्ति तथा राजा हरिश्चन्द्र नामक नाटक देखे। इन्हें देखकर उन्होंने माता-पिता की आज्ञापालन तथा सदा सत्य बोलने का संकल्प लिया। 13 वर्ष की छोटी अवस्था में ही उनका विवाह कस्तूरबा से हो गया। विवाह के बाद भी गांधी जी ने पढ़ाई चालू रखी। जब उन्हें ब्रिटेन जाकर कानून की पढ़ाई का अवसर मिला, तो उनकी माँ ने उन्हें शराब और माँसाहार से दूर रहने की प्रतिज्ञा दिलायी। गांधी जी ने आज...

एक जीवन ऐसा भी - लता मंगेशकर

                                 by  हिंदी ओलंपियाड फाउंडेशन  |   Hindi Olympiad Foundation स्वर सम्राज्ञी लता मंगेशकर सम्पूर्ण विश्व में अपने सुरीले स्वर में 20 से भी अधिक भाषाओं में 50,000 से भी अधिक गीत गाकर ‘गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकार्ड’ में नाम लिखा चुकीं स्वर सम्राज्ञी लता मंगेषकर को कौन नहीं जानता ? लता मंगेशकर का जन्म 28 सितम्बर, 1929 को इन्दौर (मध्य प्रदेश) में हुआ था। उनके पिता पण्डित दीनानाथ मंगेशकर मराठी रंगमंच से जुडे़ हुए थे। पाँच वर्ष की छोटी अवस्था में ही लता ने अपने पिता के साथ नाटकों में अभिनय प्रारम्भ कर दिया और उनसे ही संगीत की शिक्षा भी लेने लगीं। जब लता केवल 13 वर्ष की थीं, तब उनके सिर से पिता का वरद हस्त उठ गया। सबसे बड़ी होने के कारण पूरे परिवार के भरण पोषण की जिम्मेवारी उन पर आ गयी। उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और सपरिवार मुम्बई आ गयीं। पैसे के लिए उन्हें न चाहते हुए भी फिल्मों में अभिनय करना पड़ा; पर वे तो केवल गाना चाहती थीं।  काफी प्रयास के बाद उन्हे...

हिंदी के पुरोधा - रामधारी सिंह दिनकर

                                 by  हिंदी ओलंपियाड फाउंडेशन  |   Hindi Olympiad Foundation राष्ट्रीय कवि - रामधारी सिंह दिनकर 23 सितंबर 1908 को बिहार के मुंगेर जिला के सिमरिया गांव में जन्में रामधारी सिंह दिनकर की शुरुआती शिक्षा गांव में ही हुई। पिता रवि सिंह किसान थे। दिनकर ने स्नातक की पढ़ाई पटना विश्वविद्यालय से की। छात्र जीवन से ही संघर्षों और चुनौतियों से जूझते हुए दिनकर ने बचपन से जवानी तक के सफ़र में अनेक उतार-चढ़ाव देखे। इस संघर्षों ने दिनकर के विचारों और सोच को एक व्यापक दृष्टिकोण प्रदान किया। इस परिवेश का परिणाम ही था कि जुझारूपन उनके व्यक्तित्व की एक प्रमुख प्रवृत्ति बन गया। हालांकि, तमाम उतार-चढ़ाव के बावजूद दिनकर की पैनी नजर अपने युग की हर छोटी-बड़ी घटनाओं पर केंद्रित रही। अपने युग की हर सांस को वे पहचानते थे और इसका विस्फोट उनकी कविताओं और रचनाओं में खूब देखने को मिलता है। दिनकर यशस्वी भारतीय परम्परा के अनमोल धरोहर हैं, जिन्होंने अपनी कालजयी रचनाओं के जरिए देश निर...

एक जीवन ऐसा भी - आचार्य तुलसी

                                by  हिंदी ओलंपियाड फाउंडेशन  |   Hindi Olympiad Foundation अणुव्रत महायोगी : आचार्य तुलसी समाज को प्रेरणा देने के लिए भारत की पुण्य धरा पर अनेक ऋषियों, सन्तों तथा मनीषियों ने जन्म लेकर अपना तथा समाज का जीवन सार्थक किया है। ऐसे ही एक मनीषी थे आचार्य श्री तुलसी, जिनका जन्म 20 सितम्बर,  1914 को हुआ था। वे महावीर स्वामी द्वारा प्रवर्तित जैन पन्थ की तेरापन्थ शाखा में मात्र 11 वर्ष की अवस्था में दीक्षित हुए और 22 वर्ष में इस धर्मसंघ के नौवें अधिशास्ता बन गये। आचार्य तुलसी यों तो एक पन्थ के प्रमुख थे, पर उनका व्यक्तित्व सीमातीत था। अपनी मर्यादाओं का पालन करते हुए भी उनके मन में सम्पूर्ण मानवता के लिए प्रेम था। इसलिए सभी धर्म, मत और पन्थ, सम्प्रदायों के लोग उनका सम्मान करते थे। उनका जीवन एक खुली किताब की तरह था, जिसे पढ़ने के लिए किसी तरह के अक्षरज्ञान की भी आवश्यकता नहीं थी। इतना ही नहीं, उसे जितनी बार पढ़ो, हर बार नये अर्थ उद्घाटित होते थे। श्रद्धालु घण...

एक जीवन ऐसा भी - आचार्य श्रीराम शर्मा

                               by  हिंदी ओलंपियाड फाउंडेशन  |   Hindi Olympiad Foundation गायत्री के परम आराधक  : युग पुरुष आचार्य श्रीराम शर्मा गायत्री परिवार नामक संस्था के संस्थापक आचार्य श्रीराम शर्मा का जन्म 20 सितम्बर, 1911 को ग्राम आँवलखेड़ा (जिला आगरा, उ.प्र.) में हुआ था। यद्यपि वे एक जमींदार घराने में जन्मे थे, पर उनका मन प्रारम्भ से ही अध्यात्म साधना के साथ-साथ निर्धन एवं निर्बल की पीड़ा के प्रति संवेदनशील था। जब गाँव की एक हरिजन महिला कुष्ठ से पीड़ित हो गयी, तो बालक श्रीराम ने घर वालों का विरोध सहकर भी उसकी भरपूर सेवा की। उस महिला ने स्वस्थ होकर उन्हें ढेरों आशीर्वाद दिये। 15 वर्ष की अवस्था में वसन्त पंचमी पर काशी में पण्डित मदनमोहन मालवीय ने बालक श्रीराम को गायत्री की दीक्षा दी। तबसे उनका जीवन बदल गया। उसी समय उन्हें अदृश्य छायारूप में अपनी गुरुसत्ता के दर्शन हुए, जिसने उन्हें हिमालय आकर गायत्री की साधना करने का आदेश दिया। उनका आदेश पाकर वे हिमालय जाकर कठोर तप में ली...

एक जीवन ऐसा भी - यतीन्द्रनाथ दास

                              by  हिंदी ओलंपियाड फाउंडेशन  |   Hindi Olympiad Foundation अनशनव्रती : यतीन्द्रनाथ दास यतीन्द्रनाथ दास का जन्म 27 अक्तूबर, 1904 को कोलकाता में हुआ था। 16 वर्ष की अवस्था में ही वे असहयोग आंदोलन में दो बार जेल गये थे। इसके बाद वे क्रांतिकारी दल में शामिल हो गये। शचीन्द्रनाथ सान्याल से उन्होंने बम बनाना सीखा। 1928 में वे फिर पकड़ लियेे गये। वहां जेल अधिकारी द्वारा दुर्व्यवहार करने पर ये उससे भिड़ गये। इस पर इन्हें बहुत निर्ममता से पीटा गया। इसके विरोध में इन्होंने 23 दिन तक भूख हड़ताल की तथा जेल अधिकारी द्वारा क्षमा मांगने पर ही अन्न ग्रहण किया। क्रांतिकारी गतिविधियों में संलग्न रहने के कारण उन्हें कई बार जेल जाना पड़ा। हर बार वे बंदियों के अधिकारों के लिए संघर्ष करते रहे। लाहौर षड्यंत्र केस में वे छठी बार गिरफ्तार हुए। उन दिनों जेल में क्रांतिवीरों से बहुत दुर्व्यवहार होता था। उन्हें न खाना ठीक मिलता था और न वस्त्र, जबकि सत्याग्रहियों को राजनीतिक बंदी मान कर सब...

एक जीवन ऐसा भी - सुब्रह्मण्य भारती

                             by  हिंदी ओलंपियाड फाउंडेशन  |   Hindi Olympiad Foundation  तमिल काव्य में राष्ट्रवादी स्वर : सुब्रह्मण्य भारती भारतीय स्वातंत्र्य संग्राम से देश का हर क्षेत्र और हर वर्ग अनुप्राणित था। ऐसे में कवि भला कैसे पीछे रह सकते थे। तमिलनाडु में इसका नेतृत्व कर रहे थे सुब्रह्मण्य भारती। यद्यपि उन्हें अनेक संकटों का सामना करना पड़ा; पर उनका स्वर मन्द नहीं हुआ। सुब्रह्मण्य भारती का जन्म एट्टयपुरम् (तमिलनाडु) में 11 दिसम्बर, 1882 को हुआ था। पाँच वर्ष की अवस्था में ही वे मातृविहीन हो गये। इस दुख को भारती ने अपने काव्य में ढाल लिया। इससे उनकी ख्याति चारों ओर फैल गयी। स्थानीय सामन्त के दरबार में उनका सम्मान हुआ और उन्हें ‘भारती’ की उपाधि दी गयी। 11 वर्ष की अवस्था में उनका विवाह कर दिया गया। अगले साल पिताजी भी चल बसे। अब भारती पढ़ने के उद्देश्य से अपनी बुआ के पास काशी आ गये। चार साल के काशीवास में भारती ने संस्कृत, हिन्दी और अंग्रेजी भाषा का अध्ययन किया। अंग्रेजी कवि शेल...