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एक जीवन ऐसा भी - नेताजी सुभाष चन्द्र बोस

 हर साल २३-जनवरी को हम नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की जयंती मनाते हैं, उनके दिए गए प्रसिद्द नारे  ‘तुम मुझे खून दो मैं तुम्हे आज़ादी दूंगा’ और ‘जय हिन्द’ हमें आज भी देशभक्ति के जज्बे से भर देते हैं। बचपन से ही विलक्षण प्रतिभा के धनी नेताजी का सम्पूर्ण जीवन देश के लिए समर्पित था। आईये याद करें उस महामानव आत्मा को जिसने हमारी आजादी में अहम् भूमिका निभाई और अपने उदाहरणों से हमें दशकों से प्रेरित करते आ रहे हैं और आने वाली पीढ़ियों को भी प्रेरित करते रहेंगे। 

उनके मानव से महा-मानव बनने की ये यात्रा एक दिन की नहीं थी वरन ये गुण उनमे बचपन से ही विद्यमान थे।

 संकल्प से सब कुछ हासिल किया जा सकता है

बात नेताजी सुभाषचंद्र बोस के बचपन की है जब वे स्कूल में पढ़ा करते थे। बचपन से ही वे बहुत होशियार थे और सारे विषयो में उनके अच्छे अंक आते थे, लेकिन वे बंगाली में कुछ कमजोर थे। बाकि विषयों की अपेक्षा बंगाली मे उनके अंक कम आते थे।

एक दिन अध्यापक ने सभी छात्रों को बंगाली में निबंध लिखने को कहा। सभी छात्रों ने बंगाली में निबंध लिखा। मगर सुभाष के निबंध में बाकि छात्रों की तुलना में अधिक कमियाँ निकली।

अध्यापक ने जब इन कमियों का जिक्र कक्षा में किया तो सभी छात्र उनका मजाक उड़ाने लगे।उनकी कक्षा का ही एक विद्यार्थी सुभाषचंद्र बोस से बोला- “वैसे तो तुम बड़े देशभक्त बने फिरते हो मगर अपनी ही भाषा पर तुम्हारी पकड़ इतनी कमजोर क्यों है।”

यह बात सुभाषचन्द्र बोस को बहुत बुरी और यह बात उन्हें अन्दर तक चुभ गई। सुभाषचंद्र बोस ने मन ही मन निश्चय कर लिया कि वह अपनी भाषा बंगाली सही तरीके से जरुर सीखेंगे। 

चूँकि उन्होंने संकल्प कर लिया था इसलिये तभी से उन्होंने बंगाली का बारीकी से अध्ययन शुरू कर दिया। उन्होंने बंगाली के व्याकरण को पढ़ना शुरू कर दिया, उन्होंने दृढ निश्चय किया कि वे बंगाली में केवल पास ही नहीं होंगे बल्कि सबसे ज्यादा अंक लायेंगे।

सुभाष ने बंगाली पढ़ने में अपना ध्यान केन्द्रित किया और कुछ ही समय में उसमे महारथ हासिल कर ली। धीरे धीरे वार्षिक परीक्षाये निकट आ गई।

सुभाष की कक्षा के विद्यार्थी सुभाष से कहते – भले ही तुम कक्षा में प्रथम आते हो मगर जब तक बंगाली में तुम्हारे अंक अच्छे नहीं आते, तब तक तुम सर्वप्रथम नहीं कहलाओगे।

वार्षिक परीक्षाएं ख़त्म हो गई। सुभाष सिर्फ कक्षा में ही प्रथम नहीं आये बल्कि बंगाली में भी उन्होंने सबसे अधिक अंक प्राप्त किये। यह देखकर विद्यार्थी और शिक्षक सभी दंग रहे गये।

उन्होंने सुभाष से पूछा – यह कैसे संभव हुआ ?

तब सुभाष विद्यार्थियों से बोले – यदि मन ,लगन ,उत्साह और एकग्रता हो तो, इन्सान कुछ भी हाँसिल कर सकता है।

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