by हिंदी ओलंपियाड फाउंडेशन | Hindi Olympiad Foundation
मशहूर शहनाई वादक भारत रत्न बिस्मिल्लाह खान
भारतीय संस्कृति में शास्त्रीय संगीत का विशेष महत्व है। शास्त्रीय संगीत को ही क्लासिकल म्यूजिक के नाम से भी जाना जाता है। संगीत एक विशेष साधना है, यह कलाकार की लगन, रियाज, जोश पर निर्भर करता है कि वह अपनी प्रतिभा से देश का नाम कैसे रोशन करे। बिस्मिल्ला खां सांप्रदायिक सौहार्द के पोषक रहे। उन्होंने सदैव शास्त्रीय संगीत के द्वारा ही भारत की अखंडता को सुदृढ़ बनाने में अपनी अहम भूमिका अदा की। बिस्मिल्ला खां का जन्म, बिहार के एक गांव-डुमरांव के, ऐसे परिवार में हुआ जिनकी पीढिय़ां ने शास्त्रीय संगीत के संस्कारों को सहजता से संजोया रखा। उनके पूर्वज भी पांच पीढिय़ों से राज दरबारों में संगीतकार थे।
एक कलाकार वास्तव में ईश्वर की सच्ची नियामत होती है। जो कि धर्म जात-पात से ऊपर उठकर मानवता वादी विचार धारा का समर्थन कर, आगामी पीढिय़ों के लिए एक मिशाल कायम करें।
उस्ताद बिस्मिल्लाह खां दुनिया के एक मशहूर शहनाई वादक हैं, जिन्होंने संगीत के क्षेत्र में अपना अद्धितीय योगदान दिया। यही नहीं उन्होंने संगीत की दुनिया में शहनाई एक अलग पहचान दिलवाने का श्रेय भी उन्हीं को ही जाता है।
बिस्मिल्लाह खां जी ही वो शख्सियत थे, जिन्होंने 15 अगस्त, 1947 में अपनी शहनाई की मधुर धुन के साथ आजादी का स्वागत किया था, और तब से स्वतंत्रता दिवस के दिन लाल किले पर प्रधानमंत्री के भाषण के बाद शहनाई वादन एक परंपरा बन गई है।
यही नहीं बिस्मिल्लाह खां जी को संगीत के क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान के लिए उन्हें साल 2001 में देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से भी नवाजा गया था। इस सम्मान को प्राप्त करने से पूर्व पदम श्री, पदम भूषण और पदम विभूषण से भी सम्मानित किया गया था।
उस्ताद ने अपने जीवन के आखिरी दिनों में दिल्ली के इंडिया गेट पर शहनाई जाने की इच्छा जाहिर की थी, लेकिन उनकी यह इच्छा पूरी नहीं हो सकी। 21 अगस्त, साल 2006 में उनका देहांत हो गया। बिस्मिल्लाह ख़ाँ के सम्मान में उनके इंतकाल के दौरान राजकीय सम्मान के साथ शहनाई भी दफन की गई थी।
उन्होंने कहा था, “सिर्फ संगीत ही है, जो इस देश की विरासत और तहज़ीब को एकाकार करने की ताक़त रखता है”
Comments
Post a Comment